पड़ोसन भाभी की चूत की प्यास बुझाई – Bhabhi ki Chudai Kahani

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Bhabhi ki Chudai Kahani में मेरे पड़ोस में एक नया परिवार आया. भाभी बहुत सुंदर पर सादगी वाली थी. मैं उन पर मर मिटा. उनके घर में पूजा थी तो मैं भी गया.

मैं एक अनजान प्रेमी एक गुमनाम शहर की बेहद हसीन गली में रहता हूँ, जिसे मैं ‘मेरी कल्पना कुंज’ कहता हूँ.

आज जब मैं सुबह जगा, तो पाया कि बाहर से कुछ ज्यादा ही चहल-पहल की आवाजें आ रही हैं.

मैंने बाहर जाकर देखा तो पता चला कि कुछ लोग हमारे सामने वाले घर में शिफ्ट हो रहे हैं.

मैं अन्दर लौटने ही वाला था कि उस शोर में किसी की पायल की झंकार मेरे कानों तक पहुंची.

मैं ठहर गया और उस ओर नजर दौड़ाई.

सामने देखा तो एक सुंदर सी भाभी जी हरी साड़ी में, खुले बालों के साथ थीं.

उनका चेहरा सादगी और खूबसूरती की मिसाल दे रहा था.

वे अपने छोटे से कुत्ते के पीछे उसे पकड़ने के लिए भाग रही थीं.

न जाने क्यों, यह देखकर मैं ठहर सा गया, मैं बस देखता ही रहा.

भाभी पर दिल आ गया और बस Bhabhi ki Chudai ki Kahani शुरू हो गयी.

तभी सामने से एक आदमी आया और उसने कुत्ते को पकड़कर उस महिला के हाथ में दे दिया.

जी हां, वह आदमी उस हरी साड़ी वाली भाभी का पति था.

यह देखकर मैं उस दिन वापस अपने काम में लग गया और वे लोग मेरे सामने वाले घर में शिफ्ट हो गए.

अगले दिन जब मैं जागा, तो देखा कि अपनी बालकनी में हरी साड़ी की जगह हल्की नीली साड़ी पहने, भीगे बालों में वही भाभी कपड़े डाल रही थीं.

उनके भीगे बालों से पानी की बूँदें उनके गले को चूमते हुए ब्लाउज के अन्दर घुस रही थीं.

यह देखकर मेरी नजर उनकी कमर पर पड़ी.

मेरे मुँह से कामुक सिसकारियां निकल गईं- वाह … क्या कमर है!

सुबह के सुनसान माहौल में शायद मेरी सिसकारियां भाभी के कान में भी पड़ गई थीं.

उन्होंने मुझे देखा और फिर वे अन्दर चली गईं.

मैं कुछ देर उन्हें ही सोचता रहा, फिर उठा और तैयार होकर अपने काम पर चला गया.

अगले ही दिन उन्होंने अपने घर में पूजा रखी थी.

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मैं सबसे नजदीकी पड़ोसी था तो मुझे भी बुलाया गया.

जब मैं उनके घर पहुंचा, तो देखा कि कई सारे लोग आए थे.

इसी बीच मेरी भाभी और उनके पति से बात हुई.

उनके पति आर्मी में थे और उनकी शादी को सिर्फ दो साल हुए थे.

भाभी का नाम पूछा, तो पता चला कि उनका नाम अंजलि है.

हम बैठे थे, तभी भाभी चाय लेकर आईं.

मैंने कप तो पकड़ा.

लेकिन मेरी नजर उनसे हट ही नहीं रही थी.

आज उन्होंने गले में मंगलसूत्र पहना था, जो उनके दोनों स्तनों के बीच, आधा अन्दर और आधा बाहर … बिल्कुल फँसा हुआ था.

मैंने अपनी नजरें चुराईं और चाय लेकर सबसे बातें करने लगा.

पूजा के बाद सब खाना खाने बैठे.

उन्होंने मुझे भी बुलाया लेकिन मैंने मना कर दिया और कहा- मैं थोड़ी मदद कर देता हूँ, बाद में खा लूँगा!

हम कुछ लोग खाना दे रहे थे तभी कुछ सामान लाने के लिए मैं किचन में गया.

भाभी ऊपर से कुछ सामान निकाल रही थीं.

वे थोड़ा असहज हो रही थीं, फिर भी उन्होंने सामान को पकड़कर नीचे खींचा.

अचानक से वह सामान मेरे ऊपर गिर गया.

भाभी घबरा कर मेरे गले पर, जहां चोट लगी थी, हाथ रखकर बोलीं- लगा तो नहीं?

उनके हाथ के स्पर्श से मैं अन्दर तक हिल गया और सिर हिलाकर ना में जवाब दिया.

इतने में वह नीचे गिरे बेलन को उठाने के लिए झुकीं, तो उनकी साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया.

उनके उभरे हुए, सुंदर, सुडौल स्तनों को देखकर ऐसा लगा जैसे वे दोनों कबूतर ब्लाउज को फाड़कर बाहर आना चाहते हों.

मेरे लंड में मानो आग लग गई, दिल तो किया कि उन्हें वहीं चोद दूँ, पर ऐसा नहीं कर सकता था.

भाभी खड़ी होकर मुझे सब्जी देती हुई बोलीं- जल्दी लेकर जाओ!

उस दिन जो हुआ, सो हुआ.

मैंने घर आकर दो बार लंड हिलाया, तब चैन मिला.

कुछ महीने बाद मैं उनके घर गया.

उनके पति घर पर नहीं थे क्योंकि उनकी छुट्टियां खत्म हो चुकी थीं.

भाभी घर में अकेली रहती थीं तो मेरा उनसे कभी-कभी मस्ती-मजाक हो जाता था.

मैं बैठा था, तभी वे चाय बनाने जाने लगीं.

उनकी साड़ी मेरे हाथ की घड़ी में फँस गई और वे रुक गईं.

उनकी कमर, उनके स्तन, उनके होंठ, उनकी जवानी … सबने मुझे कुछ ही समय में पागल बना दिया.

भाभी की साड़ी मेरे हाथ से निकलने ही वाली थी कि मैंने पल्लू पकड़ लिया और बोला- भाभी रहने दो ना, ऐसे ही मस्त लग रही हो!

उन्होंने हंसकर मुझे धीरे से मारा और बोलीं- दिमाग खराब हो गया है क्या?

मैंने कहा- हां, और दिल भी!

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वे थोड़ा हंसीं और किचन में चाय बनाने चली गईं.

वे चाय लेकर आ रही थीं, तभी उनका पैर मेरे बगल वाले सोफे से टकरा गया.

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वे चाय लेकर मेरे ऊपर गिर गईं.

थोड़ी-सी चाय मेरे सीने पर और उनके एक हाथ पर भी गिर गई.

जितना मैं चाय से जला, उससे कहीं ज्यादा उनकी गर्मी से जल गया.

मेरा लंड पूरी तरह से तन गया था.

चूंकि मैंने शॉर्ट्स पहना हुआ था, शायद इसीलिए उन्हें भी इसका अहसास हो गया होगा.

अचानक से वे उठीं और अपने हाथ पर फूँकने लगीं.

तभी मुझे भी जलन का अहसास हुआ तो मैंने अपनी टी-शर्ट उतार दी.

वे अपने हाथ पर अपने होंठों से चाटने लगीं.

हम ज्यादा जले नहीं थे, तो मैं उन्हें ये सब करते देख रहा था.

मैं सोचने लगा- काश, भाभी मेरा भी ऐसे ही चूस लें!

तभी उन्हें मेरे जलने की याद आई.

उन्होंने मेरे सीने पर हाथ रखा और सॉरी बोलने लगीं.

मैं कहां सॉरी सुन रहा था … मैं तो उनके हाथों से खुद को सहलाने का मज़ा ले रहा था.

फिर मैंने कहा- कोई बात नहीं!

मेरे इतना बोलते ही वे दवा लेने चली गईं और लाकर मेरे ऊपर लगाने लगीं.

तभी ट्यूब उनके हाथ से फिसल गई और मेरे लंड के ऊपर जा गिरी.

उन्होंने जब देखा, तो मेरा पूरा तन चुका था.

वे दवा लगा रही थीं और मैं मज़े ले रहा था.

फिर मैंने उनसे ट्यूब ली और उनके हाथों पर दवा लगाने लगा.

मैं सहलाते-सहलाते दवा लगा रहा था, और वे भी इसे महसूस कर रही थीं.

तभी मैंने अपना हाथ धीरे से उनकी कमर पर रख दिया.

वे थोड़ा पीछे हटीं, पर कुछ बोलीं नहीं.

मैंने फिर से उनका हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा तो वे मेरे ऊपर गिर गईं.

मैंने उन्हें इतना जोर से पकड़ा कि उनके स्तन और मेरे बीच हवा भी आए तो उसका दम घुट जाए!

वे बोलने लगीं- क्या कर रहे हो? तुम्हें हो क्या गया है?

मैंने कहा- आपसे प्यार!

यह कह कर मैंने उनके होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया.

जल्दी ही उन्होंने मुझे धक्का देकर खड़ा किया और जाने लगीं.

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तभी मैंने उन्हें पीछे से पकड़ लिया.

उनकी दोनों चूचियां मेरे हाथों में थीं.

आधी साड़ी नीचे गिरी थी.

चूचियों को पकड़कर मैंने पीछे से उनके गले को चूमा और कान पर होंठों से काटा.

नीचे मेरा लंड ऐसा लग रहा था, मानो साड़ी के बाहर से ही उनकी गांड में घुस जाएगा.

उनके बालों की खुशबू, उनके बदन की सुगंध मुझे उनमें ही घोल रही थी.

उन्होंने अपना सिर पीछे किया, तो मैं फिर से उनके होंठों को चूमने लगा और उनके स्तन दबाने लगा.

यहाँ से फिर Devar bhabhi ki chudai ki kahani की शुरुआत हुयी.

ऐसा लग रहा था, मानो उनके जिस्म में आग लग गई हो.

कुछ देर तक ऐसा ही चला.

फिर अचानक से उन्होंने मुझे धक्का देकर सीढ़ियों से ऊपर अपने कमरे की ओर दौड़ लगा दी.

मैं निराश तो हुआ और मैंने सोचा भी कि मैं ये क्या कर रहा हूँ? भाभी को नाराज़ कर दिया!

पर मैंने मन में ठान लिया कि आज तो भाभी को चोदकर ही जाऊंगा!

मैं भी उनके पीछे भागा.

भाभी अपने कमरे में चली गईं और जैसे ही दरवाज़ा बंद करने लगीं, उनकी साड़ी … जो नीचे गिरी थी, आधी बाहर रह गई.

इसकी वजह से दरवाज़ा बंद नहीं हुआ.

मैंने साड़ी को पकड़ लिया.

वे बोलीं- चले जाओ!

मैंने कहा- आज नहीं भाभी, प्लीज़!

मैंने दरवाज़े को जोर से धक्का दिया तो भाभी जाकर अपने बेड पर गिर गईं.

मैंने साड़ी पकड़ रखी थी, जिसकी वजह से वह पूरी खुल गई थी.

अब भाभी सिर्फ़ ब्लाउज़ और पेटीकोट में थीं.

उनका पेटीकोट भी एक तरफ़ जाँघ तक चढ़ गया था.

मैंने उनकी चूचियों को मसला था इसलिए ब्रा भी ब्लाउज़ के बाहर से दिख रही थी.

यूँ कहें तो भाभी आधी नंगी हो चुकी थीं,

काली ब्रा, गुलाबी ब्लाउज़, पेटीकोट, और गोरा चमकता बदन … मुझे लग रहा था, जैसे स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.

मैंने भाभी के पैरों को पकड़ा और चूमने लगा.

अब भाभी भी कुछ नहीं बोल रही थीं, बस आहें भर रही थीं.

मैंने उनके पैरों को चूमते-चूमते पूरा पेटीकोट उतार दिया.

जैसे ही मेरे होंठ उनकी चूत के पास पहुंचे, मैंने देखा कि कुछ बह रहा था.

देखा तो पाया कि भाभी झड़ चुकी थीं.

मैंने उन्हें धीरे से पकड़ कर खड़ा किया और उनका ब्लाउज़ खोल दिया.

फिर मैंने एक हाथ उनकी ब्रा में और दूसरा उनकी पैंटी में डाल दिया.

मैं उनकी गांड में अपने लौड़े को रगड़ने लगा.

उनकी चूचियां ऐसी थीं, जैसे मक्खन!

तभी मैंने उनकी चूत में अपनी उंगली डाल दी.

उनकी हल्की सी चीख निकल गई.

मैंने उन्हें फिर से बेड पर पटक दिया और एकदम से नंगी कर दिया.

भाभी मदहोश हो गई थीं और उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली थीं.

मैंने अपने कपड़े उतारे और पूरा नंगा होकर भाभी के ऊपर चढ़ गया.

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मेरे लंड की सख्ती उनकी टांगों के बीच में उन्हें चुभ रही थी तो उन्होंने खुद ब खुद अपनी टांगें फैला दीं.

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अब मेरा लंड चुत के मुहाने पर चुम्मी लेने लगा था.

उधर मैं अपने मुँह में भाभी के एक दूध को अपने होंठों में दबा कर खींच रहा था.

इससे भाभी की चुत की आग पुनः भभक उठी और उन्होंने मेरे सर को पकड़ कर अपने मम्मों पर दबा दिया.

मैं किसी छोटे बच्चे की तरह भाभी के निप्पल को अपने होंठों में दबा कर चूसने लगा था.

वे आह आह करती हुई मुझे अपने मम्मे चुसवा रही थीं.

बारी बारी से दोनों दूध चूसने के बाद मैंने उनकी आंखों में झाँका.

वे वासना से तप्त मेरी तरफ देखने लगीं.

मैंने लंड को चुत पर रगड़ते हुए कहा- इसे रास्ता दिखाओ!

उन्होंने अपने हाथ से मेरे लंड को पकड़ा और अपनी चुत के छेद पर रख दिया.

मैंने हल्के से दबाव दिया तो चुत ने भी लंड को अन्दर आने की छूट दे दी.

लंड अन्दर सरक गया और भाभी के कंठ से ‘आह मर गई’ की आवाज निकली.

मैंने पूरा लंड चुत की जड़ तक ठांस दिया और कहा- मैं मरने नहीं दूंगा भाभी जी, मैं तो आपकी मारने आया हूँ!

वे हंस दीं और बोलीं- कुत्ता साला!

मैंने उनकी चूची के निप्पल को दांत से दबाते हुए खींचा और कहा- कुतिया साली!

वे हंस दीं और हम दोनों ताबड़तोड़ चुदाई के धक्कों का मजा लेने लगे.

Bhabhi ki Chudai Kahani करते हुए करीब दस मिनट बाद भाभी की बॉडी धनुष की तरह ऐंठने लगी और वे ‘आई ई मर गई आह!’ करती हुई कराहीं और झड़ गईं.

उनके झड़ने के बाद मैं धकापेल करता रहा और जैसे ही झड़ने को आया, मैंने लंड बाहर निकाल कर उनकी चुत के बाहर रस झाड़ दिया.

वे मेरी इस हरकत से बहुत खुश थीं और कुछ पल बाद उन्होंने मुझसे कहा भी कि हमने प्रोटेक्शन यूज नहीं किया था तो मुझे डर लग रहा था कि कहीं तुम अन्दर ही न निकल जाओ … फिर मुझे दवा लेनी पड़ती!

मैंने उनके होंठों की चुम्मी ली और कहा- मुझे आपकी हंसी आपके होंठों पर कायम चाहिए!

वे बोलीं- क्यों चाहिए?

मैंने कहा- आप मेरी हंसती हुई गुड़िया की कल्पना हो. पति से दूरी की उदासी चेहरे पर दिखने लगी थी.

इस पर वे बोलीं- तो इसका मतलब यह हुआ कि जो भी लड़की लंड की प्यासी होगी, तुम उसे चोद दोगे?

मैं हंस पड़ा और उन्हें चूम कर पुनः चुदाई की तैयारी करने लगा.

आशा है आपको मेरी यह सेक्स कहानी पढ़ कर मजा आया होगा.

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