तीन भाइयो की एक दुल्हन – Gangbang Sex Story
gangbang sex story: मेरा नाम राजा बाबू है, आज भी जब वो सब याद करता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं और लंड अपने आप खड़ा हो जाता है।
बात पाँच साल पुरानी है, साल 2020 की।
मेरी छोटी बहन इतिश्री उस वक्त अठारह साल की थी.
बिल्कुल दूध-मलाई जैसी गोरी, लंबी-लंबी आँखें, भरे हुए बूब्स जो ब्लाउज में कैद नहीं होते थ., कमर इतनी पतली कि दोनों हाथों से पकड़ लो और गोल-गोल चूतड़ जो सलवार में भी हिलते थे।
मोहल्ले के लौंडे उसकी एक झलक के लिए पागल थे, पर किस्मत से शादी हमारे जीजा अशोक से तय हो गई।
अशोक बैंक में क्लर्क था, सबसे छोटा भाई।
उसके दो बड़े भाई थे।
सबसे बड़ा सुशांत, तलाकशुदा, गठीला बदन, आठ इंच का माल था उसका, लोग कहते थे। मँझला संजय, जेल की हवा खा चुका, गैंगस्टर टाइप, पर भाइयों में जान थी।
घर में बस बूढ़ी बीमार माँ थी, कोई और औरत नहीं।
पैतृक जमीन-जायदाद ढेर सारी थी, इसलिए तीनों भाई एक साथ ही रहते थे।
शादी धूमधाम से हुई।
विदाई के वक्त इतिश्री की आँखों में आँसू थे, पर उसकी मुस्कान बता रही थी कि वो खुश है। ससुराल पहुँचकर जब सुहागरात का कमरा सजा था, लाल जोड़े में मेरी बहन किसी बॉलीवुड हिरोइन से कम नहीं लग रही थी।
मंद रोशनी में दीये जल रहे थे, फूलों की खुशबू चारों तरफ थी।
अशोक कमरे में आया, दरवाजा अंदर से बंद किया, घबराया हुआ सा।

उसने धीरे से इतिश्री के पास बैठकर उसका हाथ थामा और बोला, “सुनो जी, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।
माँ की तबीयत हमेशा खराब रहती है, पापा गुजर चुके, मेरे दोनों भाई रंडवे मर जाएँगे।
तुम इस घर की इकलौती बहू हो, तुम्हारे कंधों पर पूरा परिवार है।
तुम्हें तीनों भाइयों को पत्नी का सुख देना होगा, तीनों से बच्चे पैदा करने होंगे।”
इतिश्री पहले तो सन्न रह गई, पर अशोक की आँखों में आँसू देखकर उसका दिल पिघल गया। वो मुस्कुराई और बोली, “अगर तुम ऐसा चाहते हो तो मैं तैयार हूँ।
मैं वचन देती हूँ कि मैं तुम तीनों की पत्नी बनूँगी, तीनों को बराबर प्यार दूँगी और तीनों के बच्चे पैदा करूँगी।”
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ये सुनते ही अशोक ने उसे बाहों में खींच लिया और होंठों पर ऐसा चुम्बन लिया कि इतिश्री की साँसें रुक गईं।
उसने जीभ अंदर डाल दी, दोनों की जीभें लड़ने लगीं।
इतिश्री की पहली सुहागरात थी, वो शरमा रही थी पर जोश भी चढ़ रहा था।
अशोक ने धीरे-धीरे उसका पल्लू सरकाया, लाल साड़ी का पल्लू फर्श पर गिरा।
फिर ब्लाउज के हुक एक-एक करके खोले, लाल ब्रा में कैद बूब्स बाहर आए, गुलाबी निप्पल तने हुए।
उसने ब्रा भी खींचकर फेंक दी।
“आह्ह्ह कितने सॉफ्ट हैं तेरे बूब्स रे इतिश्री,” कहते हुए उसने एक बूब मुँह में लिया और जोर-जोर से चूसने लगा।
इतिश्री की सिसकियाँ शुरू हो गईं, “आह्ह्ह्ह अशोक… धीरे… पहली बार है… ऊउइइइ…”। दूसरा बूब उसने हाथ से मसलना शुरू किया।
फिर पेटीकोट का नाड़ा खींचा, पेटीकोट नीचे सरका, लाल पैंटी पूरी गीली थी।
अशोक ने पैंटी सूँघी और बोला, “तेरी चूत का रस तो पूरा पैंटी पी गया।”
इतिश्री शरम से लाल हो गई, पर अशोक ने पैंटी भी उतार दी।

उसकी गुलाबी चूत पर हल्के-हल्के बाल थे।
अशोक घुटनों पर बैठ गया, टाँगें चौड़ी कीं और चूत पर जीभ फेरने लगा।
इतिश्री की कमर अपने आप ऊपर उठ गई, “आह्ह्ह्ह्ह अशोक… ये क्या कर रहे हो… ओह्ह्ह्ह… जीभ अंदर… ह्ह्ह्ह्ह… चूसो ना पूरा…”।
अशोक ने क्लिट पकड़कर चूसना शुरू किया, दो उँगलियाँ चूत में डालकर अंदर-बाहर करने लगा।
इतिश्री का रस उसके मुँह पर बह रहा था।
फिर अशोक खड़ा हुआ, शेरवानी उतारी, पायजामा नीचे किया, उसका सात इंच का मोटा लंड तनकर खड़ा था।
इतिश्री ने पहली बार लंड देखा, डरते-डरते हाथ बढ़ाया।
अशोक ने उसका हाथ पकड़कर लंड पर रखा, “चूस इसे रानी, आज से ये तेरा भी है।”
इतिश्री ने झुककर लंड मुँह में लिया, ग्ग्ग्ग्ग… गीईई… गों गों… धीरे-धीरे पूरा मुँह में ले लिया। अशोक ने सिर पकड़कर हल्के-हल्के धक्के मारने शुरू किए, “आह्ह्ह्ह साली रंडी बन गई मेरी बीवी आज से।”
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कुछ देर बाद अशोक ने उसे लिटाया, टाँगें कंधों पर रखीं, लंड चूत पर रगड़ा और एक जोरदार झटका मारा।
इतिश्री की चीख निकल गई, “आअह्ह्ह्ह्ह्ह मार डाला… धीरे…” पर अशोक रुका नहीं, धीरे-धीरे पूरा अंदर-बाहर करने लगा।
थप-थप-थप की आवाज़ें शुरू हो गईं।
इतिश्री का दर्द धीरे-धीरे मजा बनने लगा.
वो कमर ऊपर उठाकर साथ देने लगी, “हाँ अशोक… और जोर से… फाड़ दो मेरी चूत… आह्ह्ह्ह्ह…”।
अशोक ने स्पीड बढ़ाई, बूब्स चूसते हुए झड़ गया, गरम वीर्य चूत के सबसे अंदर।
इतिश्री भी चरम पर पहुँच गई, “ऊईईईई मर गई… आह्ह्ह्ह्ह…”।
पूरी रात उन्होंने पाँच बार चुदाई की, कभी डॉगी में, कभी इतिश्री ऊपर से, हर बार नया जोश। सुबह तक इतिश्री की चूत सूज गई थी, पर मुस्कान उसके चेहरे पर थी।
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एक साल बाद इतिश्री ने बेटा पैदा किया।
मैं भांजे के पहले जन्मदिन पर उनके घर गया।
दिन भर पार्टी चली, रात को सब सोने लगे, पर मैंने देखा तीनों भाई दारू पी रहे थे।

इतिश्री रसोई में बर्तन धो रही थी।
अचानक सुशांत ने पीछे से कमर पकड़ ली, “आज तेरी असली सुहागरात है रानी, आज तक सिर्फ अशोक ने चोदा है, अब हम दोनों का नंबर।”
इतिश्री घबराई, “जेठ जी… भाई यहाँ है…” पर संजय ने आगे से बूब्स दबा दिए, “तेरा भाई कुछ नहीं बोलेगा, और बोलेगा तो उसे भी दिखा देंगे कि तू कितनी बड़ी रंडी है।”
मैं छुपकर देख रहा था।
अशोक ने होंठ चूस लिए, सुशांत ने साड़ी का पल्लू खींचा, संजय ने ब्लाउज फाड़ दिया।
ब्रा नहीं थी, भारी बूब्स उछलकर बाहर आ गए।
सुशांत ने एक बूब मुँह में लिया, “आह्ह्ह कितने रसीले हैं तेरे बूब्स रे बहू, आज तक सिर्फ अशोक चूसता था, अब हम भी चखेंगे।”
संजय ने दूसरा बूब चूसना शुरू किया।
इतिश्री की सिसकियाँ शुरू हो गईं, “आह्ह्ह्ह जेठ जी… देवर जी… कोई देख लेगा… ऊउइइइ…”।
अशोक ने साड़ी-पेटीकोट ऊपर उठाया, पैंटी गीली थी, उसने पैंटी नीचे खींची और बोला, “तेरी चूत तो पहले से तैयार है रंडी।”
फिर अशोक ने रेजर-क्रीम लाया, “आज तेरी चूत बिल्कुल साफ करेंगे।”
इतिश्री को दीवान पर लिटाया, टाँगें चौड़ी कीं और चूत के सारे बाल साफ कर दिए।
अब उसकी गुलाबी चूत चमक रही थी।
तीनों ने अपने कपड़े उतार दिए।
सुशांत का लंड आठ इंच का मोटा था, संजय का सात का, अशोक का भी तना हुआ।
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सुशांत लेट गया, “आजा बहू, मेरे लंड पर बैठ।”
इतिश्री शरमाते हुए उसके ऊपर बैठी, लंड चूत पर रखा और धीरे से नीचे बैठ गई, पूरा लंड अंदर चला गया, “ऊईईईईई जेठ जी… फाड़ दिया… आह्ह्ह्ह्ह…”।
संजय ने आगे से मुँह में लंड ठूँस दिया, ग्ग्ग्ग्ग गोंगोंगों गीईईई।

अशोक बूब्स चूस रहा था।
फिर सुशांत ने खड़ा होकर इतिश्री को गोद में उठा लिया और खड़े-खड़े चोदने लगा.
थपथपथपथपथप, “ले रंडी… ले जेठ का लंड… आज तेरी चूत फाड़ दूँगा।”
इतिश्री चीख रही थी, “हाँ जेठ जी… और जोर से… फाड़ दो मेरी चूत… आह्ह्ह्ह्ह…”।
दस मिनट बाद सुशांत ने चूत में सारा माल उड़ेल दिया।
इतिश्री अभी और माँग रही थी, “अब मुझे और चाहिए…”।
अशोक और संजय ने उसे सैंडविच बना दिया।
अशोक नीचे लेटा, इतिश्री उसके लंड पर बैठी, संजय ने पीछे से गांड में लंड पेल दिया।
इतिश्री की चीख निकल गई, “ऊईईईईई मर गई… दो-दो लंड… आह्ह्ह्ह्ह्ह…”।
दोनों ने तालमेल से चोदना शुरू किया, थपथपथपथप, “ले साली… ले दो लंड एक साथ… आज तेरी गांड और चूत दोनों फाड़ देंगे।”
इतिश्री मदहोश होकर चिल्ला रही थी, “हाँ… चोदो मुझे… तीनों के लंड की रंडी हूँ मैं… आह्ह्ह्ह्ह…”।
दस मिनट बाद दोनों ने एक साथ झड़ दिया, चूत और गांड वीर्य से भर गईं।
इतिश्री भी फव्वारा छोड़कर झड़ी।
तीनों थककर लेट गए, इतिश्री उनके बीच नंगी पड़ी थी, चूत-गांड से वीर्य बह रहा था।
मैंने उसे पानी पिलाया।
उसने मुस्कुराकर कहा, “भाई, मैं खुश हूँ।
मैं तीनों की साँझी बीवी हूँ, तीनों का मुझ पर बराबर हक है।”
मुझसे वचन लिया कि किसी को नहीं बताऊँगा।
तीन साल में दो और बच्चे हुए, एक संजय का, एक सुशांत का।
आज भी वो घर में तीन भाइयों की साँझी रंडी है और खुश है।




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