ट्रेन में मेरे और मम्मी के साथ ग्रुप सेक्स :- Group Sex Stories in Hindi
- By : Hindi Kahani
- Category : Train Me Chudai

group sex stories in hindi में और मम्मी घूमने के लिए दिल्ली में ट्रेन से जा रही थी. रस्ते में 6 लड़के हमारी ट्रेन में चढ़े. उन्होंने पहले मेरी मम्मी को गर्म किया और उन्हें देखकर मैं भी गर्म होकर train mein chudai करने लगी.
मेरा नाम मिताली है, और मैं 21 साल की हूँ।
गोरी चमड़ी, लंबे काले बाल, और 32-24-34 का हॉरग्लास फिगर—कॉलेज में लड़के मेरे पीछे पागल थे।
फिर भी, मैंने सिर्फ़ दो दोस्तों के साथ मज़े किए थे।
अभी-अभी ग्रेजुएशन पूरा करके मैं अपने घर लौटी थी, दिल्ली से दूर एक छोटे से शहर में।
मेरी मम्मी, सरिता, 45 साल की हैं, लेकिन उनकी खूबसूरती देखकर कोई उनकी उम्र का अंदाज़ा नहीं लगा सकता।
गोरी, भरे हुए 42-38-40 के फिगर वाली, उनके बड़े-बड़े स्तन और भारी गाण्ड हर मर्द की नज़र खींच लेती थी।
हाँ, वो थोड़ी मोटी थीं, लेकिन उनकी कर्वी बॉडी उन्हें और भी आकर्षक बनाती थी।
मम्मी हमेशा साड़ी में सजी-धजी रहती थीं, और उनकी शालीनता ऐसी थी कि कोई उनके बारे में गलत नहीं सोच सकता।
उन्होंने कभी मेरे पापा के अलावा किसी मर्द को पास नहीं फटकने दिया। train me chudai ki kahani
हमारी ज़िंदगी सामान्य थी, लेकिन चार महीने पहले कुछ ऐसा हुआ जिसने सब बदल दिया। ग्रेजुएशन के बाद छुट्टियाँ मनाने के लिए मैं और मम्मी दिल्ली जा रहे थे.
राजधानी एक्सप्रेस के फर्स्ट एसी कोच में।
पापा को ऑफिस में काम की वजह से छुट्टी नहीं मिली, तो उन्होंने हमें स्टेशन छोड़ा।
हमारा केबिन खाली था, सिर्फ़ मैं और मम्मी।
मम्मी ने पीली साड़ी और लाल ब्लाउज़ पहना था, जिससे उनकी गोरी कमर और भारी स्तन उभर कर सामने आ रहे थे।
मैंने ब्लू टॉप और ब्लैक जीन्स पहनी थी, जो मेरी पतली कमर और टाइट फिगर को हाइलाइट कर रही थी।
ट्रेन चल पड़ी।
बाहर का नज़ारा, गर्म हवा, और स्टेशन की चहल-पहल धीरे-धीरे पीछे छूट रही थी।
हमने अपने बैग्स रखे, खिड़की के पास बैठकर चाय पी, और हल्की-फुल्की बातें की।
मम्मी ने अपने कॉलेज के दिनों की कहानियाँ सुनाईं, और मैंने अपनी ग्रेजुएशन पार्टी की बातें शेयर कीं।
कुछ घंटों बाद एक स्टेशन पर छह लड़के ट्रेन में चढ़े।

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शायद कॉलेज के स्टूडेंट्स, ग्रुप ट्रिप पर जा रहे थे।
उनमें से दो—सुनील और संजय—हमारे केबिन में आए, बाकी चार बगल वाले केबिन में।
वो बार-बार एक-दूसरे के केबिन में आ-जा रहे थे, कभी सीट एक्सचेंज करने, कभी मज़ाक करने।
मैंने गौर किया कि वो लड़के मुझे और मम्मी को चोरी-छिपे देख रहे थे।
उनकी नज़रें मेरे टाइट टॉप पर अटक रही थीं, और मम्मी की साड़ी के नीचे झाँकने की कोशिश कर रही थीं।
मैंने इसे इग्नोर किया—लड़कों का यही तो नेचर है।
मम्मी भी कुछ नहीं बोलीं, बस अपनी साड़ी ठीक करती रहीं।
थोड़ी देर बाद बातचीत शुरू हुई।
पता चला वो इंजीनियरिंग के सेकंड ईयर के स्टूडेंट्स थे, छुट्टियों में दिल्ली घूमने जा रहे थे।
उनके नाम थे सुनील, अमित, प्रवीण, सुशांत, ईशान, और संजय।
वो मज़ाकिया थे, और धीरे-धीरे हमारी बातें बढ़ने लगीं।
हमने खाना शेयर किया—मम्मी की लाई हुई आलू की सब्ज़ी और पराठे, और उनके पास से चिप्स और कोल्ड ड्रिंक।
सुनील ने मम्मी की तारीफ़ की, “आंटी, आप तो इतनी फिट हैं, लगता ही नहीं कि आपकी बेटी इतनी बड़ी है!”
मम्मी बस मुस्कुरा दीं।
संजय ने मेरी तरफ देखकर कहा, “मिताली, तुम तो कॉलेज की हिरोइन लगती हो!”
मैं हँस दी, मज़ाक समझकर।
लेकिन उनकी नज़रें अब भी हम पर टिकी थीं—मेरे स्तनों पर, मम्मी की कमर पर।
मैंने फिर इग्नोर किया।
मम्मी भी चुप थीं, शायद उन्हें भी आदत थी ऐसी नज़रों की।
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रात होने लगी।
टीटी ने टिकट चेक किए, और हम सब अपने-अपने बर्थ पर सेट होने लगे।
तभी मेरी बेस्ट फ्रेंड का फोन आया।
मैं उससे बात करने के लिए केबिन से बाहर, गेट के पास चली गई।
हवा तेज़ थी, ट्रेन की रफ्तार से बाल उड़ रहे थे।
मैंने करीब डेढ़ घंटा बात की—कॉलेज, बॉयफ्रेंड्स, और दिल्ली के प्लान्स।
जब वापस लौटी, तो मैंने देखा कि हमारे केबिन का दरवाज़ा हल्का सा खुला था।
मैंने अंदर झाँका, और जो देखा, उससे मेरे पैर जम गए।
मम्मी की साड़ी का पल्लू गिरा हुआ था।
उनके एक तरफ प्रवीण बैठा था, दूसरी तरफ संजय।

दोनों मम्मी से सटकर बैठे थे, उनके हाथ मम्मी की गोरी कमर और जांघों पर घूम रहे थे।
मम्मी की आँखें आधी बंद थीं, जैसे वो किसी और दुनिया में हों।
उनका चेहरा लाल था, साँसें तेज़।
मैं स्तब्ध थी—मेरी शालीन मम्मी, जो कभी पापा के अलावा किसी को पास नहीं आने देती थीं, अब दो अनजान लड़कों के साथ ऐसी हालत में! train main chudai ki kahani
मैं अंदर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।
बस दरवाज़े के पास खड़ी रही, छिपकर देखने लगी।
संजय ने मम्मी की साड़ी खींचनी शुरू की।
मम्मी ने कोई विरोध नहीं किया।
साड़ी फर्श पर गिरी, और मम्मी सिर्फ़ पेटीकोट और लाल ब्लाउज़ में रह गईं।
प्रवीण ने ब्लाउज़ के बटन खोले, और मम्मी की सफेद ब्रा से उनके भारी स्तन उभर आए। संजय खड़ा हुआ, अपने कपड़े उतारने लगा।
अब वो सिर्फ़ अंडरवियर में था।
मम्मी ने उसकी तरफ देखा, और बिना कुछ बोले उसका अंडरवियर नीचे खींच दिया।
संजय का लंड बाहर निकला—इतना बड़ा, इतना मोटा, कि मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। मम्मी भी चौंक गईं, लेकिन अगले ही पल उन्होंने उसे मुँह में ले लिया।
वो ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगीं, जैसे कोई भूखी शेरनी।
प्रवीण ने मम्मी की ब्रा उतारी, और उनके बड़े-बड़े स्तन आज़ाद हो गए।
वो उनके निप्पलों को चाटने लगा, उन्हें मसलने लगा।
मम्मी ने एक हाथ प्रवीण की पैंट में डाला, और उसका लंड हिलाने लगी।
मुझे ये सब देखकर अजीब सा नशा चढ़ रहा था।
मेरी शालीन मम्मी, जो हमेशा आदर्श की मूरत थीं, अब दो लड़कों के साथ ऐसी हरकतें कर रही थीं।
मेरी चूत गीली होने लगी।
मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी।
संजय ने मम्मी को बर्थ पर लिटाया, और अपना लंड फिर से उनके मुँह में डाल दिया।
प्रवीण ने मम्मी का पेटीकोट खींचा, उनकी नीली पैंटी उतारी।
उसने पैंटी को सूँघा, फिर संजय को दे दिया।
संजय ने उसे मुँह में रखकर चाटा, जैसे कोई टॉफी हो।
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प्रवीण ने मम्मी की जांघें फैलाईं, और उनका मुँह उनकी चूत में घुस गया।
मम्मी की सिसकारियाँ केबिन में गूंज रही थीं।
उनकी चूत, घने बालों से ढकी, गीली चमक रही थी।
थोड़ी देर बाद संजय मम्मी के मुँह पर झड़ गया, और बगल में बैठ गया।
मैं ये सब देखकर मज़े ले रही थी, तभी किसी ने मुझे पीछे से कसकर पकड़ लिया।
एक बड़ा हाथ मेरे मुँह पर था, दूसरा मेरी कमर पर।
मैं डर गई, छटपटाने लगी, लेकिन वो बहुत ताकतवर था।
“अपनी माँ को रंडियों की तरह चुदते देख मज़ा आ रहा है?”
उसने मेरे कान में फुसफुसाया। “अब तुझे भी रंडी बनाता हूँ।”
ये सुनील की आवाज़ थी।

उसने मुझे ज़ोर से धक्का दिया, और मैं दरवाज़ा खोलकर केबिन में घुस गई।
मम्मी ने मुझे देखा, और शर्म से उनके चेहरे का रंग उड़ गया।
उन्होंने अपने स्तनों को हाथों से ढकने की कोशिश की।
“आंटी, आपकी बेटी भी आपकी तरह रंडी निकली,” सुनील ने हँसते हुए कहा। “देखो, अब इसे तुम्हारे सामने चोदता हूँ।”
“नहीं, इसे छोड़ दो, प्लीज़!”
मम्मी ने गुहार लगाई, लेकिन उनकी आवाज़ में कमज़ोरी थी।
मैं, दूसरी तरफ, उत्तेजित थी।
मुझे उन लड़कों के साथ चुदने का मन कर रहा था।
सुनील ने मुझे उठाया, और मेरा टॉप फाड़ दिया।
मेरी ब्रा, जीन्स, पैंटी—सब कुछ उतारकर उसने मुझे नंगा कर दिया।
प्रवीण ने मम्मी का पेटीकोट भी उतार दिया।
अब हम दोनों पूरी तरह नंगी थीं।
मेरी चूत ट्रिम्ड थी, हल्के बालों के साथ।
मम्मी की चूत घने जंगल की तरह थी, जैसे सालों से शेव नहीं की हो।
केबिन का दरवाज़ा लॉक हुआ।
सुनील ने मुझे घुटनों पर बिठाया, और अपनी पैंट नीचे की।
उसका लंड संजय से भी बड़ा था—इतना मोटा कि मेरे मुँह में फिट ही नहीं हो रहा था।
प्रवीण और संजय मेरे बगल में खड़े हो गए।
मैं समझ गई, और एक-एक करके तीनों के लंड चूसने लगी।
उनकी गर्मी, उनका स्वाद, मेरे मुँह में फैल रहा था।
तीनों बारी-बारी मेरे मुँह और स्तनों पर झड़ गए।
मम्मी चुपचाप देख रही थीं, लेकिन उनकी आँखों में समझ थी—वो जान गई थीं कि मैं भी इसे चाहती हूँ।
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सुनील मम्मी के बगल में लेट गया, उन्हें चूमने लगा, उनके भारी स्तनों को मसलने लगा।
प्रवीण मेरे पास आया, मेरे निप्पलों को चूसने लगा।

संजय बाकी तीन लड़कों—ईशान, सुशांत, और अमित—को बुलाने बगल के केबिन गया, बिना कपड़े पहने।
कुछ ही देर में वो तीनों भी आ गए।
दरवाज़ा फिर से लॉक हुआ, और वो भी नंगे होने लगे।
मुझे और मम्मी को बगल-बगल बिठाया गया।
ईशान, सुशांत, और अमित हमारे सामने खड़े थे।
ईशान और सुशांत के लंड सामान्य थे, लेकिन अमित का लंड इतना छोटा था—शायद 3 इंच—कि मैं हँस पड़ी।
मम्मी ने मेरे कान में फुसफुसाया, “तेरे पापा का भी बस इतना ही था।”
हम दोनों हँसने लगे।
फिर हमने तीनों के लंड चूसने शुरू किए।
अमित एक मिनट में ही मेरे मुँह में झड़ गया।
मैंने उसका माल उसके पैरों पर थूक दिया।
ईशान और सुशांत भी जल्दी झड़ गए।
इतने में सुनील और प्रवीण के लंड फिर से खड़े हो चुके थे।
सुनील ने मुझे एक बर्थ पर लिटाया, और अपना विशाल लंड मेरी चूत में घुसा दिया।
दर्द से मेरी चीख निकल गई।
मैंने धीरे करने को कहा, लेकिन उसने नहीं सुना।
वो ज़ोर-ज़ोर से मुझे चोदने लगा, जैसे कोई जानवर।
मेरी चूत उसकी ताकत के सामने लाचार थी, लेकिन धीरे-धीरे दर्द मज़े में बदलने लगा।
मेरी सिसकारियाँ केबिन में गूंज रही थीं। train me chudai story
उधर, प्रवीण ने मम्मी को लिटाया, और उनकी चूत में अपना लंड पेल दिया।
मम्मी मज़े से सिसक रही थीं, उनकी आँखें बंद, चेहरा लाल।
जैसे-जैसे बाकी लड़कों के लंड खड़े हुए, सबने बारी-बारी हमें चोदा—चूत, गाण्ड, मुँह, हर जगह।
सुनील का लंड मेरी चूत को फाड़ रहा था, संजय मेरी गाण्ड में घुसा, और प्रवीण मेरे मुँह में। मम्मी भी तीन-तीन लंड एक साथ ले रही थीं।

अमित का छोटा लंड ठीक से घुस भी नहीं पा रहा था, तो वो बस किनारे बैठकर देखता रहा।
कई घंटों तक ये सिलसिला चला।
हर लड़के ने हमारी चूत में झड़ा, चाहे हमने मना किया।
मेरी चूत गीली थी, मम्मी की चूत तो जैसे नदी बन गई थी।
मम्मी को ऐसा मज़ा पहले कभी नहीं मिला था—पापा का छोटा लंड उन्हें कभी संतुष्ट नहीं कर पाया था।
सुनील का लंड सबसे बड़ा था, फिर संजय का।
प्रवीण, सुशांत, और ईशान का सामान्य, और अमित का तो बस हँसी का पात्र।
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पूरी रात चुदाई का तूफान चलता रहा।
सुबह होने को थी।
हमारी साँसें अभी भी तेज़ थीं, जिस्म पसीने और माल से गीले।
लड़के अपने कपड़े पहनकर बगल के केबिन में चले गए, हमें अकेला छोड़कर।
मैं और मम्मी एक-दूसरे की तरफ देखे।
हमारी आँखों में शर्म थी, लेकिन एक अजीब सा सुकून भी।
हमने जल्दी से कपड़े पहने—मम्मी ने अपनी साड़ी लपेटी, मैंने अपनी फटी जीन्स और टॉप समेटा।
हम चुप थीं, लेकिन हमारे बीच एक अनकहा रिश्ता बन गया था।
हमने एक-दूसरे को गले लगाया, और मम्मी ने मेरे माथे को चूमा। “
हमारी इज़्ज़त अब हमारे घर की चारदीवारी में ही रहेगी,” उन्होंने धीरे से कहा।
मैंने सहमति में सिर हिलाया।
हमने फैसला किया कि ये रात हमारी यादों में रहेगी, लेकिन हमारी ज़िंदगी फिर से उसी शालीनता की राह पर लौटेगी, जो हमारी पहचान थी।
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