पति फौज में पत्नी मौज में – Bhabhi ki Chudai Kahani

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मेरा नाम शिल्पा है। मैं एक साधारण लेकिन आत्मविश्वासी महिला हूं। मेरी शादी को तीन साल हो चुके हैं और मेरे पति आर्मी में हैं, जिससे वो अक्सर घर से बाहर ही रहते हैं। घर पर मेरी सास, ससुर और देवर राकेश रहते हैं। राकेश सबसे छोटा है, और चंचल स्वभाव का है। पहले मैं उसे एक छोटे बच्चे की तरह देखती थी, लेकिन अब समय के साथ उसकी नजरों में एक बदलाव मैंने साफ देखा है।

राकेश की नजरें मुझपर पड़ती हैं, तो मुझे साफ महसूस होता है कि वो अब मुझे एक भाभी नहीं बल्कि एक औरत के रूप में देखने लगा है।

मुझे याद है उस दिन की बात जब मैं बरामदे में बैठी थी और मेरा फोन अंदर बजा। मैं जैसे ही फोन उठाने को झुकी, मेरी साड़ी का पल्लू सरक गया। मैंने देखा कि राकेश की नजरें मेरी चूचियों पर गड़ गईं। उसके चेहरे का भाव एक पल में बदल गया था। मैं समझ गई थी कि वो अब बच्चा नहीं रहा। उसकी आंखों में जो भूख थी, वो मुझे बहुत कुछ बता रही थी।

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मुझे नहीं पता कि मैं क्यों उस दिन कुछ नहीं बोली। शायद इसलिए कि वो परिवार का ही हिस्सा था या शायद मैं खुद भी अंदर से एक अजीब सी उत्तेजना महसूस कर रही थी। जब मैंने उसके खड़े लंड को देखा, तो मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

अंदर ही अंदर कुछ बदलने लगा था।

उस दिन के बाद, राकेश की हरकतें और बढ़ गईं। वो कभी न कभी ऐसा कुछ कर ही देता, जिससे मैं समझ जाती कि उसकी नजरें मेरी चूत और चूचियों पर ही टिकी हुई हैं। कभी मेरे करीब आकर बैठ जाता तो कभी रसोई में जानबूझकर टकरा जाता।

लेकिन मैंने इस खेल को रोका नहीं।

एक दिन जब घर में एक छोटा सा समारोह था और मैं रसोई में अकेली खाना बना रही थी, राकेश रसोई में आया। उसने जानबूझकर फिसलने का नाटक किया और मेरे करीब आ गया। उसने मेरे कंधे को पकड़ा और तभी उसकी उंगलियां मेरी चूचियों को छू गईं। उस पल मैं कुछ नहीं बोली।

“चोट तो नहीं लगी?” मैंने सहजता से पूछा, लेकिन अंदर से मेरा शरीर गर्म हो रहा था।

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राकेश की छुअन में एक अजीब सा सुकून था।

उसके बाद कुछ दिनों तक सब शांत था, लेकिन मैं जानती थी कि राकेश इस मौके की तलाश में था कि कब वह दोबारा मेरे करीब आ सके।

फिर एक दिन इनवर्टर की बैटरी डिस्चार्ज हो गई। गर्मी के कारण मैं छत पर जाकर सोने लगी। वहां राकेश भी सो रहा था। उसके साथ मम्मी और बहन भी थीं, इसलिए मुझे कोई संकोच नहीं हुआ।

जब रात का अंधेरा छा गया और सब सो गए, मुझे अपने पेट पर राकेश के हाथ की गर्माहट महसूस हुई। मैंने जानबूझकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

जब उसकी उंगलियां मेरी चूचियों को दबाने लगीं, तो मेरे होंठों से हल्की सिसकारी निकल गई, लेकिन मैं कुछ नहीं बोली।

जब राकेश के हाथों ने मेरी चूचियों को कसकर पकड़ा और दबाना शुरू किया, तो मेरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई। मैंने जानबूझकर आंखें बंद रखी, लेकिन मेरी सांसों की रफ्तार तेज हो गई थी। राकेश का स्पर्श नाजुक लेकिन चाहत से भरा था।

मैंने जब उसे रोकने के बजाय शांत रहना चुना, तो वह और ज्यादा हिम्मत जुटाने लगा। उसके होंठ मेरे गालों के करीब आ गए और उसने मेरे होंठों को हल्के से चूम लिया।

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लेकिन तभी मैं जाग गई।

राकेश घबरा गया और ऐसे दिखाने लगा जैसे वह सो गया हो। उसकी घबराहट उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी। मैं उसे कुछ देर तक देखती रही। उसके चेहरे की मासूमियत और उसकी बदली हुई नजरें दोनों ही मुझे विचलित कर रही थीं।

मैं उठकर बगल में पेशाब करने चली गई। जब मैंने अपनी साड़ी उठाई और मूतने लगी, तो मुझे अहसास हुआ कि राकेश अभी भी मुझे देख रहा है। उसके चेहरे पर हवस और चाहत का मिला-जुला भाव था।

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जब मैं वापस आकर लेटी, तो मैंने महसूस किया कि राकेश की चटाई मेरी ओर खिसक आई थी।

अब मुझे समझ आ गया था कि वो हार मानने वाला नहीं था।

थोड़ी देर बाद मैंने उसके हाथ को फिर से अपनी जांघ पर महसूस किया। धीरे-धीरे उसकी उंगलियां मेरी साड़ी को ऊपर सरकाने लगीं। मैं जानती थी कि उसे रोकने का कोई फायदा नहीं था।

लेकिन जब उसने मेरी चूची पर हाथ रखा और उसे जोर से दबाने लगा, तो मेरी सांसें और तेज हो गईं। मेरे होंठों से हल्की सिसकारी निकल पड़ी –

“आह… राकेश…”

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उसने मेरी सांसों की तपिश को महसूस किया और मेरे कान के पास आकर फुसफुसाया –

“भाभी… मुझे आपकी चूचियां पीनी हैं। आप जाग रही हैं ना?”

मैंने कुछ नहीं कहा। न स्वीकृति दी, न इंकार किया।

मेरा मौन ही मेरी स्वीकृति थी।

राकेश ने बेखौफ होकर मेरा ब्लाउज खोलने की कोशिश की, लेकिन मैंने धीरे से उसकी उंगलियों को पकड़ते हुए कहा –

“अभी नहीं… कल पी लेना।”

उसका चेहरा मायूस हो गया, लेकिन मैं जानती थी कि यह आग बुझने वाली नहीं थी।

राकेश मुझसे लिपट गया और मेरे होंठों को फिर से चूमने लगा। उसकी छुअन में एक ऐसी ताजगी थी, जिसे मैंने महीनों से महसूस नहीं किया था। पति के दूर रहने की वजह से मैं खुद भी प्यासी थी।

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मैंने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे और करीब खींच लिया।

जब उसके हाथ मेरी पेंटी के नीचे गए और उसकी उंगलियां मेरी चूत के पास पहुंचीं, तो मैं खुद को रोक नहीं पाई। मैं धीरे से फुसफुसाई –

“अपना लंड निकालो।”

राकेश मुस्कुराया और बोला –

“आप ही निकाल दो, भाभी।”

उसकी बातों में एक मासूमियत और चाहत थी, जो मुझे और पिघला रही थी।

मैंने उसके लोवर में हाथ डालकर उसके लंड को सहलाना शुरू किया। जैसे ही मैंने उसे पकड़ा, वह पूरा तनकर खड़ा हो गया था। मेरे हाथों में उसकी गर्माहट महसूस हो रही थी।

फिर मैंने अपनी पेंटी नीचे कर दी और राकेश के ऊपर लेट गई। वह मेरी साड़ी को ऊपर खींचकर मेरी चूत पर अपना लंड रगड़ने लगा।

मेरी चूत महीनों से चुदाई के लिए तरस रही थी। जब उसका लंड मेरे अंदर जाने लगा, तो हल्का सा दर्द हुआ। लेकिन यह दर्द भी एक अजीब से सुख में बदल गया।

राकेश की आंखों में मुझे चोदने की तीव्र इच्छा थी।

वह धीरे-धीरे मेरी चूत में अपने लंड को पेलने लगा। उसकी हर thrust पर मैं सिसकती जा रही थी –

“आह… राकेश… धीरे…”

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लेकिन राकेश अब पूरे जोश में था। उसके लंड की गर्माहट मेरी चूत के अंदर फैल रही थी। मैं पूरी तरह से उसके लंड के नीचे थी और खुद को उसके हवाले कर चुकी थी।

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उसकी हर thrust के साथ मेरा शरीर कांप रहा था।

करीब 10 मिनट तक उसने मुझे चोदा, जब तक कि उसने मेरी चूत के अंदर ही अपना पानी नहीं गिरा दिया।

मैं भी संतुष्ट थी।

चुदाई के बाद मैं नीचे उतर गई और अपनी पेंटी पहनने लगी। राकेश मेरे पीछे-पीछे नीचे आ गया और मुझे पीछे से पकड़कर कसकर गले लगाया।

वह मेरे कान में धीरे से बोला –

“भाभी, अगली बार आपकी गांड मारूंगा।”

मैं मुस्कुराई और धीरे से कहा –

“पहले मेरी चूत को अच्छे से चूसना सीखो, फिर गांड की बात करना।”

अगली सुबह, जब मैं रसोई में थी, राकेश पीछे से आया और मेरी गांड पर हाथ फेरने लगा।

“भाभी, आज आपकी गांड पेलूंगा।”

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मैंने मुस्कुराते हुए हामी भर दी –

“ठीक है… लेकिन मम्मी और दीदी को पता न चले।”

अगली सुबह जब राकेश रसोई में आया और पीछे से मेरी कमर पकड़कर खींचने लगा, तो मेरे अंदर एक अजीब सी उत्तेजना दौड़ गई। उसकी उंगलियों की छुअन मेरी गांड पर धीरे-धीरे फिसल रही थी। मैंने हल्के से उसे हटाने की कोशिश की लेकिन बिना किसी गंभीरता के।

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“राकेश… कोई देख लेगा।” मैंने धीमे स्वर में कहा।

वो हंसते हुए फुसफुसाया –

“भाभी, अब आप मेरी हैं। जब मन करेगा, तब चोदूंगा।”

उसका यह अधिकार जताना मुझे भीतर तक पिघला गया।

मैंने खाना बनाते-बनाते उसे देखा, और वह टकटकी लगाकर मेरे शरीर के हर हिस्से को घूर रहा था। उसकी नजरें मेरी चूचियों और गांड पर ही अटकी हुई थीं। मैं जानबूझकर हल्की कमर मटकाकर चलने लगी ताकि वह और उत्तेजित हो जाए।

मुझे अब यह खेल पसंद आने लगा था।

दोपहर को जब मम्मी सो रही थीं और दीदी अपने कमरे में थी, राकेश मेरे कमरे में आया। मैं अलमारी में कपड़े रख रही थी।

“भाभी…” उसकी आवाज सुनकर मैं पलटी तो देखा कि वह दरवाजे के पास खड़ा था, अपनी आंखों में वही पुरानी भूख लिए हुए।

“क्या हुआ?” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।

राकेश ने पास आकर मेरी कमर पकड़ ली और पीछे से कसकर चिपक गया।

“भाभी, कल रात आपने कहा था कि चूत चूसूंगा… तो आज मौका दीजिए।”

मैंने उसे हल्का सा धक्का देते हुए कहा –

“नहीं, पहले अपनी बहन को निहारना छोड़ दो।”

उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।

“भाभी… वो बस यूं ही…”

“अच्छा?” मैंने उसके गाल थपथपाते हुए कहा, “अब मैं तुम्हारी हूं, लेकिन उसकी तरफ आंख उठाकर भी देखा तो…”

“नहीं देखूंगा भाभी!” उसने तुरंत कहा और मेरा ब्लाउज खोलने की कोशिश करने लगा।

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उसका उतावलापन मुझे और ज्यादा मजा देने लगा था।

मैंने उसकी मदद की और अपना ब्लाउज खोल दिया। मेरी चूचियां उसकी आंखों के सामने थीं। वह झुका और उन्हें अपने मुंह में भर लिया। उसकी जीभ जब मेरे निप्पल को सहलाने लगी, तो मेरे होंठों से एक धीमी आह निकल गई।

“राकेश… जोर से चूसो…”

वह दोनों चूचियों को बारी-बारी से चूसता रहा और मैं उसके सिर को सहलाती रही।

कुछ मिनटों बाद मैं उसे बिस्तर पर खींच लाई और उसके ऊपर बैठ गई।

“आज तुम्हें पूरी तरह से चूसने दूंगी, लेकिन बदले में तुम्हें मेरी चूत को भी अच्छा से चोदना होगा।”

“भाभी, अभी कर देता हूं!” उसने कहा और मेरी पेंटी नीचे खींचने लगा।

मेरा लंड पूरी तरह तैयार था। मैंने खुद अपनी पेंटी नीचे उतारी और उसके मुंह के पास अपनी चूत को ले गई।

“चाटो…” मैंने आदेश दिया।

राकेश ने बिना देर किए अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर डाल दी। वह ऐसे चाट रहा था जैसे महीनों से भूखा हो। उसकी जीभ मेरी चूत के हर कोने को छू रही थी। मेरी सिसकारियां कमरे में गूंजने लगीं।

“आह… राकेश… और अंदर डालो जीभ… हां, वहीं…”

कुछ देर तक वह मेरी चूत को चाटता रहा, फिर मैंने उसे उठाया और बिस्तर पर लिटाकर उसके लंड को मुंह में भर लिया।

उसकी सिसकारी अब मेरी थी।

“भाभी… आपका मुंह बहुत गर्म है… आह…”

मैंने उसका लंड पूरी तरह से चूसा और फिर उसके ऊपर चढ़ गई।

“अब मैं तुम्हें अपनी चूत में लूंगी।”

मैंने उसकी आंखों में देखा और धीरे-धीरे उसका लंड अपनी चूत के अंदर धकेलने लगी। उसकी मोटाई मेरी चूत को पूरी तरह भर रही थी।

“आह… राकेश… तुम्हारा लंड बहुत मोटा है…”

“भाभी, आपकी चूत बहुत गर्म है…”

हम दोनों के शरीर पसीने से भीग चुके थे।

मैं तेजी से ऊपर-नीचे होने लगी। हर बार जब मैं बैठती, तो उसका लंड मेरी चूत के अंदर तक चला जाता।

करीब 15 मिनट तक चुदाई के बाद राकेश ने मुझसे कहा –

“भाभी… अब मैं झड़ने वाला हूं!”

“झड़ने दो… मेरी चूत में ही डाल दो!” मैंने कहा और अपनी रफ्तार और बढ़ा दी।

जब उसने अपनी सारी गर्माहट मेरी चूत के अंदर उड़ेल दी, तो हम दोनों थककर बिस्तर पर गिर गए।

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मैं संतुष्ट थी।

उसने मेरी चूचियों को सहलाते हुए कहा –

“भाभी, अब आपकी गांड कब मारूं?”

मैंने उसकी तरफ देखते हुए हंसकर कहा –

“जब तुम और मजबूत हो जाओगे, तब… अभी चूत से ही संतुष्ट रहो!”

हम दोनों हंस पड़े।

उस दिन के बाद, मेरी और राकेश की दुनिया बदल चुकी थी। उसने मेरी चूत में जो आग लगाई थी, वह हर गुजरते दिन के साथ और भड़कती जा रही थी। हर बार जब वह मेरे पास आता, तो उसकी मासूमियत और हवस का मिलाजुला भाव मुझे और पिघला देता।

अब मैं महसूस करने लगी थी कि मैं सिर्फ उसकी भाभी नहीं, उसकी चाहत बन चुकी थी।

एक दिन जब वह मेरे पास आया, तो मैंने उसके चेहरे पर एक अलग सा तनाव देखा।

“क्या हुआ, राकेश?” मैंने उसके बाल सहलाते हुए पूछा।

वह कुछ देर तक चुप रहा, फिर बोला –

“भाभी, आप मुझे दीदी को देखता हुआ मना करती हो, लेकिन वो भी बहुत सुंदर हैं। कभी-कभी मेरा मन होता है…”

मेरे अंदर जलन की एक लहर दौड़ गई।

“राकेश!” मैंने उसकी बांह पकड़कर खींचा।

“तुम मेरी हो चुके हो। अब तुम्हारी नजरें किसी और पर नहीं जानी चाहिए, चाहे वह प्रीति हो या कोई और।”

“भाभी, मैं तो बस… माफ कर दो।”

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मैंने उसके होंठों को चूमते हुए कहा –

“अगर तुम्हारा मन कहीं और गया, तो मैं तुम्हारी चूत के दरवाजे बंद कर दूंगी।”

राकेश ने मेरी बात सुनकर मेरी चूचियों को कसकर पकड़ लिया।

“नहीं भाभी, ऐसा कभी नहीं होगा। आप ही मेरी सबकुछ हो।”

उसका यह अधिकार जताना मुझे अंदर तक सुकून दे गया।

कुछ दिनों बाद, जब मम्मी और दीदी बाजार गए हुए थे, घर खाली था। मैं अपने कमरे में कपड़े बदल रही थी कि राकेश चुपके से अंदर आ गया।

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“भाभी…” उसकी आवाज में वही पुरानी चाहत थी।

मैंने उसे देखते हुए अपनी साड़ी ढीली छोड़ दी।

“क्या चाहिए?” मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा।

“भाभी, आज आपकी गांड मारनी है। आपने वादा किया था।”

मैं उसकी बात पर मुस्कुराई।

“ठीक है, लेकिन पहले तुम्हें मेरी चूत को फिर से चाटना होगा।”

उसकी आंखें चमक उठीं।

वह झट से मेरे करीब आया और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। उसने मेरी साड़ी और पेंटी उतारी और मेरी चूत पर अपनी जीभ फिराने लगा।

“आह… राकेश… यही… हां…”

मैंने अपनी टांगें और फैला दीं ताकि उसकी जीभ हर कोने तक पहुंच सके। वह मेरी चूत को ऐसे चाट रहा था जैसे यह उसका आखिरी मौका हो।

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जब मैं पूरी तरह से भीग गई, तो मैंने उसे रुकने को कहा।

“अब मेरी गांड के लिए तैयार हो जाओ।”

उसकी सांसें तेज हो गईं।

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मैंने उसे कंडोम पहनने के लिए कहा। उसने तुरंत अपने लंड पर कंडोम चढ़ाया।

मैंने बिस्तर पर घुटनों के बल झुककर अपनी गांड उसकी ओर कर दी।

“धीरे करना, राकेश। पहली बार है।”

उसने मेरी गांड पर लुब्रिकेंट लगाया और धीरे-धीरे अपना लंड अंदर डालने लगा।

“आह… राकेश… थोड़ा धीरे…”

उसकी हर thrust पर मुझे हल्का दर्द हो रहा था, लेकिन साथ ही एक अजीब सा सुख भी महसूस हो रहा था।

“भाभी, आपकी गांड बहुत टाइट है…”

“हां… बस ऐसे ही… और अंदर…”

जब उसने अपनी रफ्तार बढ़ाई, तो मैं पूरी तरह से उसकी पकड़ में आ गई। मेरी सिसकारियां पूरे कमरे में गूंजने लगीं।

“आह… राकेश… तुम्हारा लंड… मेरी गांड…”

करीब 15 मिनट तक उसने मेरी गांड चोदी। जब उसने झड़ने की बात कही, तो मैंने उसे रुकने नहीं दिया।

“झड़ जाओ, राकेश… मेरी गांड में ही…”

उसने अपनी सारी गर्माहट मेरी गांड में भर दी।

हम दोनों थककर बिस्तर पर गिर गए। उसकी पकड़ में मैं पूरी तरह से पिघल चुकी थी।

उस दिन के बाद, मैं और राकेश और करीब आ गए। अब वह सिर्फ मेरा देवर नहीं, मेरा प्रेमी बन चुका था। हम दोनों के बीच का यह रिश्ता अब सिर्फ हवस का नहीं, बल्कि एक अजीब से अपनापन का बन चुका था।

मैंने उससे कहा –

“राकेश, अब तुम मेरी हो। जब चाहो, मेरी चूत और गांड तुम्हारी है। लेकिन मेरी एक शर्त है।”

“क्या भाभी?” उसने उत्सुकता से पूछा।

“तुम सिर्फ मेरे रहोगे। चाहे कुछ भी हो जाए।”

उसने मेरी चूचियों को चूमते हुए कहा –

“आपके सिवा किसी और की तरफ देखूंगा भी नहीं।”

आगे चलके कुछ दिन में मुझे लगा की मुझे अपनी ननद को उसके भाई यानि देवर से चुदवा देने में ही भलाई है, क्युकी मुझे भी घर में पकडे जाने का दर कम करना था। 

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