पत्नी की भतीजी रीना ने अपनी माँ की चुदाई करवाई- भाग 1

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यदि आप ये दो कहानियाँ पढ़ेंगे तो आपको पूरी पृष्ठभूमि मालूम हो जाएगी और नीचे लिखी कहानी बेहतर समझ आ सकेगी|
यदि कोई पाठक चाहे तो मैं ये कहानियाँ सीधे उनको मेल भी कर सकता हूँ|

रीना ने करीब 3 वर्ष पहले मुझसे अपनी नथ खुलवाई थी और तब से वो सैकड़ों बार चुद चुकी है| जैसा मैंने पिछली वाली कहानियों में बताया था, रीना की चुदक्कड़ माँ सुलेखा कई सालों से मेरे पीछे पड़ी हुई थी| जब भी मैं उनके घर जाता या वे लोग मेरे घर आते तो हरामज़ादी लाइन मारा करती थी| परन्तु मैंने कभी सुलेखा में दिलचस्पी नहीं ली|

रीना यह बात समझ गई थी कि उसकी माँ मुझसे चुदने को आतुर है| उसने बहुत बार मुझसे कहा कि मैं उसकी माँ को चोद क्यों नहीं देता तो मैं यही बोल कर बात टाल जाता था कि सुलेखा मुझे पसंद नहीं है|

एक रोज़ लौड़ा चूसते हुए रीना पीछे ही पड़ गई- राजे मादरचोद, बोलता क्यों नहीं, मेरी माँ में क्या खराबी है जो तू उसको बरसों से इग्नोर किये जा रहा है? इतनी तो सुन्दर है मेरी माँ, फिगर भी सेक्सी है, चिकनी मुलायम काया है कुतिया की… और क्या चाहिए कुत्ते तुझको? चुची खूब बड़ी बड़ी मस्त हैं| 42 की ब्रा में भी चुची फंसी फंसी सी रहती हैं|

आप जानते ही हैं कि लंड चुसवाते हुए मर्द मानसिक रूप से कितना कमज़ोर होता है| लौंडिया इस टाइम कोई भी काम के लिए हाँ भरवा सकती है| तो मैंने बताया- रीना मेरी जान, सुलेखा हरामज़ादी ने अपने हाथ और पैरों पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया| फटी हुई एड़ियाँ, बदशक्ल नाख़ून, ये सब फूहड़पन से मुझे बहुत अधिक चिढ है| नहीं तो रंडी, तुझे पता ही है मैं किसी भी चूत को कभी छोड़ता हूँ क्या!
तब तो रीना कुछ नहीं बोली|

मगर इस बात के दो या तीन महीनों के बाद उसने फिर से वही बात उठाई तो मैंने चिढ़ के उसको फटकार दिया|
रीना ने मेरी शिकायत सब रानियों के ऊपर महारानी अंजलि से की| महारानी बेगम साहिबा ने तुरंत हुकम दिया- राजे, तुझे जल्दी से जल्दी रीना की माँ को चोदना ही चोदना है|

मल्लिका ए आलिया का हुक्म मतलब पत्थर पर लकीर, कोई किन्तु परन्तु की गुंजाइश ही नहीं| वैसे भी ये चूतनिवास अपनी बेगम जान अंजलि से इतना गहरा प्रेम करता है कि यदि वो बोले कि राजे चलती ट्रेन के आगे कूद जा तो उसका ये गुलाम बिना कोई भी सवाल किये कूद जायगा|
रीना की माँ को चोदना तो कोई खास बात थी ही नहीं| बेगम जान का हुक्म बजाने अंजलि का ये गुलाम कानपुर रीना के घर जा पहुंचा|

मेरा साला रितेश और रीना का भाई ऋषि स्टेशन पर मुझे लेने आए| घर पहुँच के सुलेखा ने मेरा स्वागत पारम्परिक रूप से किया जैसे दामाद का किया जाता है|
जब वो मेरी आरती उतार रही थी तो मैंने नोट किया कि उसके हाथ पहले जैसे बेढंगे और बिना केयर किये हुऐ नहीं हैं| लगता था कुतिया ने कई बार मैनीक्योर करवाया था| नाख़ून अच्छे से तराशे हुऐ और उन पर पर्पल शेड की नेल पोलिश लगी थी जो उसके गोरे हाथों पर खूब जम रही थी|

हाथों में इतना अधिक सुधार देखकर मैंने एक उड़ती हुई निगाह सुलेखा के पैरों पर डाली तो मैं दंग रह गया| पांव भी उतनी ही सुघड़ता से, करीने वाले से लग रहे थे| पेडीक्योर पर काफी समय और पैसा लगाया गया था| फटी हुई एड़ियाँ गायब थीं, नाख़ून साफ सुथरे और हाथों के नाख़ून वाली नेल पोलिश में रंगे हुऐ थे| बहुत सुन्दर लग रहे थे|
अवश्य ही अंजलि ने रीना के माध्यम से कोई न कोई चक्कर चलाया होगा| वर्ना तो यह फूहड़ औरत इतने सालों तक ऐसे बेकार ढंग से न रहती|
पूछूंगा रीना से कि माजरा क्या है|

रीना ने मेरी पसंद वाले कपड़े पहने हुए थे| बहुत छोटा सा निकर और सफ़ेद टॉप… वो जानती थी मैं उसकी मस्त, गोरी, चिकनी टांगों से बहुत प्रेम करता हूँ| चप्पल भी ऐसी जिसमें उसके अति सुन्दर पांव अच्छे से दिखाई दें|

हमेशा की भांति सुलेखा ने मुझ पर लाइन मारना शुरू कर दिया, वो मेरे इर्द गिर्द मंडराती रहती, बार बार मेरी नज़रों से नज़रें टिकटिकी लगा कर मिला लेती| सबकी आंख बचा के साड़ी का पल्लू गिरा देती, अपनी गर्दन को सहलाती या बालों को झटका देकर पीछे को करती|

नौकर से मेरा सूटकेस उठवा के मेहमानों वाले बैडरूम में रखवाया| जैसे ही नौकर कमरे से बाहर निकला, मैंने सुलेखा को कस के बाहुपाश में जकड़ के उसके होंठों पर एक लम्बा चुम्मा लिया|
सुलेखा हड़बड़ा गई क्योंकि उसको ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि मैं ऐसा करूँगा| बेचारी न जाने कितने वर्षों से इंतज़ार में थी, मगर जब मैंने उसका आलिंगन किया तो घबरा गई|

मेरी छाती पर दोनों हाथ रख के स्वयं को मुझसे अलग किया और और नक़ली गुस्सा दिखाते हुए आँखें तरेर के भर्राई हुई आवाज़ में बोली- यह क्या कर रहे हो बाबू साहिब… छोड़िये मुझे… यह सही नहीं है… बहुत गलत किया आपने!
मैंने कहा- देखो… खामखां ड्रामा तो कर मत… मैं सब जानता हूँ तू मुझ पर फ़िदा है… जब जब मैं शादी के बाद तेरे घर आया तूने मुझ पर अदाएं दिखाईं… वो सब क्या था? क्या तुझे मेरे साथ बैठकर गीता पाठ करना था या भजन कीर्तन करना था?
इतना बोल के मैंने फिर से सुलेखा को झपट के बाँहों में जकड़ लिया और उसके सुन्दर चेहरे पर चुम्मियों की बारिश कर दी|

इस बार सुलेखा ने ज़रा भी प्रतिरोध नहीं किया बल्कि उसने मेरी कमर कस के जकड़ ली| फिर धीमी सी आवाज़ में बोली- राजे बाबू… ठीक कह रहे हो तुम… मैं थी तुम पर फ़िदा… यह बताओ कि इतना टाइम लगा तुम्हें ये बात समझने में?… बरसों तड़पाया न? ज़रा भी तरस न आया अपनी मेहबूबा पर?
मैंने उसका मुखड़ा चूम के कहा- सब्र का फल मीठा होता है… मैं हूँ पक्का चूतिया… आज से पहले हिम्मत ही न हुई… और कोई बात नहीं!

सुलेखा न एक मुक्का मेरी छाती पर मारा- क्यों तुम्हारा हथियार मीठा पानी देता है क्या, जो सबर का फल मीठा बता रहे हो? मुझे न पीना मीठा वाला पानी!
मैं ठहाका लगा के हंसा- हरामज़ादी बहुत सयानापन दिखा रही है… ज़रा रुक कुतिया… बताऊंगा मेरे हथियार का पानी कितना मीठा है|
सुलेखा ने मेरी ओर शरारत भरी नज़रों से देखते हुए कहा- अच्छा बाबू अब समय नहीं है… फुर्सत से मिल कर बात करूंगी… किसी ने देख सुन लिया तो गज़ब हो जाएगा|

मैंने सुलेखा के मम्मे ज़ोर से दबाये, अच्छे कड़क चूचे थे हरामी कुतिया के- सुन कमीनी, मेरी जान अब थोड़ा दिमाग लगा के कोई जुगाड़ जमा| ताकि तू मेरे हथियार से खेल सके| रात को तो तू सोयगी रितेश चूतिये के साथ… मेरे साथ प्यार की पींगें कब और कैसे लड़ाएगी हरामज़ादी?
सुलेखा ने इतराते हुए साड़ी का पल्लू नीचे टपका के पहले तो मुझे चूचों के ऊपरी भाग के दर्शन दिए फिर ज़ोर से मेरी बाज़ू पर च्यूंटी काट के बोली- राजे बाबू… अभी लंच के बाद रितेश और ऋषि तो चले जाएंगे क्लिनिक… सवेरे रीना कह रही थी कि उसको मधु के साथ फिल्म देखने जाना है… बस बाबू साहिब, दो बजे के बाद घर में कोई नहीं होगा तब कर लेना अपनी मुराद पूरी… तब तक आप फ्रेश हो लो… कम्फ़र्टेबल हो के आराम से बैठो, मैं चाय का प्रबंध करती हूँ|

तभी धड़धड़ाती हुई रीना कमरे में दाखिल हुई और शिकायत भरे लहज़े में बोली- मम्मी… तुम भी न! क्या किये जा रही हो… मैंने संगीता को बोल दिया फूफाजी के लिए चाय और पापा के लिए कॉफ़ी बनाने के लिए!
संगीता खाना बनाने वाली नौकरानी है|

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सुलेखा ने कहा- मैं जाती हूँ किचन में… अपने सामने अच्छी से चाय बनवाऊंगी… संगीता तो कबाड़ा कर देगी… तू बाबू साहब के लिए तौलिया वगैरह निकाल दे… मैं जा रही किचन में!यह बोल के जैसे ही सुलेखा कमरे से गई मैंने हचक के रीना के चूचे जकड़े और चूचों से ही उसको अपनी तरफ खींच लिया| बाहुपाश में बांध के बेटीचोद की मदमस्त कर देने वाली रेशम सरीखी जांघ पर ज़ोर से निचोड़ा- हरामज़ादी रांड… आज तो पक्का चुदवा के रहेगी अपनी माँ को… कुतिया, बता कब कैसे चूत मारूं उसकी?

रीना प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ फिरते हुए बोली- चुप रह कमीने… तेरे से कितनी बार मैं बोली मेरी माँ को चोद दे… साली तेरे पर मरती है… तूने ध्यान दिया एक बार भी? बोल मादरचोद… जब महारानी अंजलि ने तुझे हुक्म सुनाया तो कैसा सिर पे पांव रख के भागा आया यहाँ… अब बोल न, ज़ुबान पर लकवा मार गया क्या कुत्ते?
मैंने कान पकड़ के माफ़ी मांगी और कहा- अच्छा रंडी की औलाद… अब यह तो बोल तूने क्या प्लान बनाया हुआ है?

रीना ने पहले मेरा मुंह चूमा, फिर बोली- पापा और भैया तो लंच करके क्लिनिक चले जायँगे… मैंने मम्मी को पहले ही बोल दिया था कि मुझको आज मधु के संग पिक्चर देखने जाना है| दो ढाई बजे तक घर में बस तू बचेगा और तेरी माशूका होने वाली रखैल मेरी चुदासी माँ| लेकिन मैं झूठ बोली थी| मैं कोई पिक्चर विक्चर नहीं जा रही… परदे के पीछे छुप के मेरे को अपनी माँ की चुदाई देखनी है… समझ गया न कुत्ते?

उसकी इतनी शैतानी से भरी हुई बातें सुन के मैं खूब हंसा, फिर रीना के चूचुक खूब ज़ोरों से निचोड़ के बोला- कितनी बड़ी माँ की लौड़ी है तू रीना! हरामी की औलाद अपनी खुद की माँ को चुदवा के कितनी खुश हो रही है! साली, छिनाल, कुलटा! ठीक है अपनी माँ को चुदते देख कर चूत में उंगली करियो… साली, कमीनी रांड!

सब कुछ ऐसा ही हुआ| मैं बाहर ड्राईंग रूम में जाकर रितेश के साथ चाय पीने बैठ गया| एक डेढ़ घण्टे तक हम दोनों यूँ ही गप्पें लगते रहे| बीच बीच में रीना, तो कभी सुलेखा आकर बैठ जाती थीं| 2 बजे लंच लगा दिया गया| सब चीज़ें मेरी पसंद की बनी थीं| सुलेखा एकदम मेरे सामने बैठी थी और रीना मेरी बाज़ू बैठी थी| ऋषि अपनी माँ की बगल वाली सीट पर और रितेश साइड में बीचोबीच था|
हंसी मज़ाक के बीच लंच हुआ|
सुलेखा बार बार अपने पैर से मेरे पैर को दबा रही थी जबकि मैं रीना की नंगी जांघें सहला रहा था|

लंच के बाद रितेश और ऋषि क्लिनिक चले गए| रितेश एक डॉक्टर है और अपना खुद का एक क्लिनिक चलाता है| ऋषि भी डॉक्टर है और अपने पिता के साथ ही क्लिनिक पर बैठता है|

उनके जाने के बाद रीना ने सुलेखा से कहा- मम्मी मैं अब पिक्चर जाऊँ? मधु इंतज़ार कर रही होगी|
फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर बोली- सॉरी फूफाजी… आपका अचानक से ट्रिप बन गया… मधु ने टिकट बुक करके रखी हुई हैं… नहीं तो आपके साथ बैठती… वैसे आपको सही न लग रहा हो तो मैं रुक जाती हूँ… मधु किसी और को ले जायगी|

इस पर सुलेखा ने जल्दी से कहा- नहीं नहीं तू जा… इतने दिन से पिक्चर पिक्चर की रट लगा रखी है… फूफाजी को आराम करने दे… जब तक ये थोड़ा सो कर तरोताज़ा होंगे तब तक तू आ ही जायगी|
मेरा हंसी के मारे बुरा हाल था, हरामज़ादी सुलेखा चाहती थी कि किसी भी सूरत में रीना घर पर न रुके, वर्ना उसकी वर्षों की चुदास कैसे बुझती|

रीना बोली- मैं चेंज करके आती हूँ!
तो सुलेखा भी शरमाते हुए बोली- कि मैं भी चेंज करके ईज़ी हो जाऊँ|
जैसे ही सुलेखा अपने कमरे में गई, रीना ने आवाज़ लगाई- मम्मी मैं जा रही हूँ!

सुलेखा ने भी आवाज़ लगा दी कि रीना अच्छा जा तू!
रीना झट से भाग के मेहमानों वाले कमरे में चली गई, मुझे बोल गई कि बाहर वाला दरवाज़ा आवाज़ करते हुए बंद कर दूँ ताकि सुलेखा समझे कि रीना गई|

जैसे ही दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई तो सुलेखा अपने कमरे से निकल आई| कमीनी ने नाइटी पहन ली थी| काफी ऊँची नाइटी थी, मुश्किल से आधी जांघें ढकी थीं| पारदर्शी कपड़े की मर्दों की चुदास भड़काने वाली नाइटी के अंदर सुलेखा ने न पैंटी डाली थी और न ब्रा| नाइटी के भीतर रांड एकदम मादरजात नंगी थी|
बड़ा मज़ा आएगा आज इसकी चूत में सुलगी हुई अग्नि बुझाने में| हरामज़ादी बहुत समय से लौड़े की प्यासी है बहुत मचल मचल के चुदेगी| भरपूर आनन्द देगी कुतिया| ऐसी लौड़े की प्यास से भरी हुई स्त्रियाँ चुदाई में बेहद मज़ा देती हैं|

मैंने उसको सिर से पांव तक निहारा| मादरचोद धीरे धीरे इतराते हुए, बल खाते हुए, मटकती हुई मेरी तरफ बढ़ रही थी| उसकी आँखों में छाई हुई हलकी हलकी लाली दर्शा रही थी कि वो बहुत उत्तेजित थी|
मैंने भी झपट के सुलेखा को बाँहों में बांधा और उठा कर अपने रूम की तरफ चला|

सुलेखा ने मेरे गले में बाहें डाल दी थीं एवं बड़े प्यार भरी नज़रों से वो मेरे चेहरे को देख रही थी| मदमस्ती से चूर आवाज़ में बोली- राजे बाबू, मेरा हमेशा से ये सपना था कि तुम्हारे साथ मेरा संगम मेरे ही बिस्तर पर हो… जिस बिस्तर पर रितेश अपना हक़ समझता, उसी बिस्तर पर तुम मेरा धर्म भ्रष्ट करो!
मैंने कहा- ठीक है डार्लिंग, जैसी डार्लिंग की इच्छा… डार्लिंग का ख्वाब तो पूरा होना ही चाहिए… लेकिन जानू मैं तेरे शराबी होंठ कुछ देर तक चूसना चाहता हूँ… थोड़ा इन होंठों से तू मुझे जाम पिला दे, फिर होंठ चूसते चूसते को बिस्तर तक गोदी में उठा के ले चलूँगा|

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सुलेखा मस्ती में चुलबुला उठी| बड़ा आनन्द आया उसे मेरी बात सुन के… इठला के बोली- राजा बाबू तुम मेरी जान लेकर ही मानोगे… इतना प्यार न करो जो मुझसे संभाले न संभले… तुम्हारी जो मर्ज़ी में आए करो मेरे संग… मैं तो तुम्हारे हाथ बिक चुकी!
मैंने रीना को सुनाने के लिए खूब ऊँची आवाज़ करके कहा- बहनचोद सुलेखा आज मैं तुझको तेरे पति के बिस्तर पे ही बदचलन बनाऊंगा… तैयार हो जा हरामज़ादी रंडी, आज तेरी चूत और चुची का मलीदा बना दूंगा माँ की लौड़ी… अब होगा चूत और लौड़े का इक्का दुक्की का खेल!

इतना बोल के मैंने सुलेखा को कस के बाहुपाश में में भींच लिया| मैं उसके होंठ चूसने ही वाला था कि उसने घबराई हुई आवाज़ में मेरे होंठो पर उंगली रखते हुए कहा- क्या गज़ब करते हो राजे बाबू… दीवारों के भी कान होते हैं… किसी ने सुन लिया तो क्या होगा?

मैंने कनखियों से देख लिया था कि रीना बिल्ली की तरह दबे पांव सुलेखा के बैडरूम में घुस गई थी| हरामज़ादी पूरी नंगी थी| एक हाथ में कपड़े दबाये चुपके से बद्ज़ात अपनी माँ की चुदाई का दृश्य देखने उसके कमरे में जा घुसी थी|

मैंने सुलेखा के होंठों से अपने होंठ कस के चिपका दिए और उसको उठाये हुए, होंठ चूसते हुए धीरे धीरे उसके कमरे की तरफ बढ़ने लगा| सुलेखा बड़े उल्लास से होंठ चुसवा रही थी| उसकी बाँहों ने मेरी गर्दन को कस के पकड़ रखा था|
बेड रूम में पहुँच कर मैंने रंडी को बिस्तर पर हौले से लिटा दिया|

सुलेखा मस्ती में कराह उठी और फंसी फंसी सी आवाज़ में बोली- राजे बाबू मुझे अपने राजा का हथियार निहारना है… मैं बाबू के औज़ार से खेलना चाहती… देखूं तो सही कि मेरा सत्यानाश करने वाला सण्ड मुसण्ड कैसा है|
मैं- सुन कमीनी, ये बाबू राजा बाबू बोलना बन्द कर सीधे सीधे राजे बोल… और सुन कुतिया मुझे ये चूतिया से शब्द जैसे औज़ार, हथियार वगैरह ज़रा भी पसंद नहीं… बोल कि राजे मैं तेरे लौड़े से खेलना चाहती हूँ… और हाँ अपनी चूत को योनि न बोलियो… जो नशा चूत या बुर कहने में है वो योनि में कहाँ… आ गई न बात समझ में, मादरचोद… हराम की ज़नी वेश्या|

सुलेखा ने मेरे चेहरे पर उंगली घुमाते हुए कहा- जैसी आज्ञा मेरे मालिक की… अब तो तेरी रखैल होने वाली हूँ जैसा हुकम मालिक देगा वही करूँगी… तू कितनी गालियाँ देता है… राजे… वैसे बहुत अच्छी लगती तेरे मुंह से गालियों की बौछार… सच में, मेरे नीचे कुछ कुछ गीलापन सा आने लगता तेरी मस्त गालियाँ सुन के!

मैं झल्ला के बोला- हरामज़ादी वेश्या, तेरी समझ नहीं आती एक बार बोलने से… बोला था न मुझे योनि, हथियार मेरे नीचे जैसे लफ़्ज़ों से सख्त चिढ़ है… कुतिया साफ साफ नहीं बोल सकती कि राजे बहन के लौड़े मेरी चूत में जूस आ रहा है|
सुलेखा ने हंस के जवाब दिया- अच्छा बाबा, जनाब-ए-आली… आपकी की चूत में खूब रस आ रहा है|
मैंने कहा- तो माँ की लौड़ी रांड अब क्या किसी निमन्त्र पत्र का इंतज़ार कर रही है क्या? जल्दी से हो जा नंगी और मटक मटक के घूम घूम के मुझे अपना बदन दिखा!

सुलेखा ने शर्मा के सर झुका लिया| शर्माती हुई लौंडिया बहुत मस्त लगती है, सो वो भी लगी| एकदम चुदास भड़काने वाली अदा!
बोली- अब ये काम भी मैं करूंगी राजे बाबू? तुम ही कर लो न, जो करना चाहते… मुझे तो जल्दी से अपना लिंग दिखाओ|| मेरे से सब्र बिल्कुल भी नहीं हो रहा… प्लीज़ राजे बाबू जल्दी!

नौकर ने मालकिन की गांड मारी | Free Hindi Sex Kahani

मैंने सुलेखा की नाइटी झट से निकाल के दूर को फेंक दी| भीतर हरामज़ादी मादरजात नंगी थी| कुतिया को उठाकर खड़ा किया और बोला- चल रंडी घूम घूम के अपने शरीर के दर्शन करवा… मैं भी उतारता हूँ कपड़े!
यह कहते कहते मैंने अपने कपड़े झटपट उतार डाले| जैसा मैंने बोला था, सुलेखा वैसे ही इतराते हुए चारों तरफ चूतड़ मटकाते हुए घूम गई|

जैसे ही उसकी निगाह मेरे तन्नाए हुए लंड पे पड़ी तो वो घूमना भूल के टकटकी लगा के फूल के कुप्पा हुए लंड को घूरने लगी| चूत में लौड़ा लेने की वर्षों पुरानी दबी हुई हसरत और भयंकर उत्तेजना ने उसके चेहरे को लाल कर दिया था| उसके मुंह से सीत्कारें निकलने लगी थीं| बिना हिले डुले सुलेखा मेरे लौड़े पर नज़रें गड़ाए थी|

मैंने भली भांति रीना की चुदक्कड़ माँ के मस्त बदन को निहारा| सुलेखा मदमस्त शरीर की स्वामिनी थी| ज़्यदा गोरी नहीं थी लेकिन सांवली भी नहीं| अच्छा साफ खिला हुआ रंग था, गहरे काले बहुत लम्बे बाल, बड़ी बड़ी आँखें| चवालीस साल की उम्र में भी साली का बदन कसा हुआ था| केवल पेट पर मामूली सी चर्बी थी| चुची के क्या कहने! बहनचोद बड़े बड़े मर्दों को बहका देने वाली चुची… मादरचोद कम से कम 42 की ब्रा डालती होगी और वो भी डी कप वाली| काले काले निप्पल जो उत्तेजना से अकड़ के सख्त हो गए थे| मम्मे तने हुए थे जैसे कि तोपों की जोड़ी निशाना साढ़े गोला दागने को तैयार हो|
उसकी त्वचा बहुत साफ और रेशम जैसी चिकनी थी| बहुत दिलकश, सुडौल काया| वो आजकल की लड़कियों जैसी सींकिया नहीं थी बल्कि अच्छी मांसल बदन वाली थी| हर सही जगह पर जो उभार होने चाहिए थे वो थे|

मैं बिस्तर पर टाँगें चौड़ी करके पैर नीचे लटका के बैठ गया और बोला- अरी हराम की औलाद रांड, होश में आ… खेल ले अब अपने यार से… |तेरे लिए ही अकड़ के फौलाद के रॉड जैसा हो गया है ये सण्ड मुसण्ड… आजा फटाफट|
मेरी तेज़ आवाज़ से सुलेखा जैसे नींद से जागी, चौंक के उसने मेरी तरफ देखा और फिर लपक के मेरे सामने फर्श पर घुटनों के बल बैठ कर लौड़े को गालों से लगा लिया| आँखें मूंदे काफी देर तक लौड़े को अपने चेहरे पर लगा कर महसूस करती रही|
उसके मुंह से गहरी गहरी सिसकारियाँ निकल रही थीं= हाय मेरे राजदुलारे… मेरी जान… मैं तुझ पर सदके जाऊं… मरजाने तैयार पड़ा है मेरी बुर की खबर लेने को… राजे बाबू ज़रा मुझे एक चुटकी तो काटो… मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं सचमुच इस कम्बख्त के साथ हूँ या ये कोई सपना तो नहीं!

मैंने उसकी मोटी गोल मर्दमर्दन करने जैसी चूची को भोंपू की तरह ज़ोर से दबाया और उसकी घुंडी कस के उमेठी| सुलेखा के मुंह से एक चीत्कार निकली और उसने मचल के लौड़े को मुंह में ले लिया| आधा लंड मुंह में था और आधा बाहर| रंडी मेरे लंड की जड़ को धीरे धीरे मसल रही थी|
सुलेखा मज़ा लेते हुए लंड चूसे जा रही थी| ऐसा लगता था कि उसको लौड़ा चूसने की कोई खास प्रैक्टिस नहीं थी| शायद रितेश के लंड को कम ही चूसती होगी| तभी एक चौंकाने वाली बात हुई जिसने सुलेखा को झकझोर डाला… साली की गांड फाड़ के रख दी|

हुआ ये कि अचानक रीना, जो परदे के पीछे छुप कर यह तमाशा देख रही थी, बाहर निकल आई| हरामज़ादी नंगी तेज़ तेज़ कदम बढाती हुई सुलेखा के पास आ खड़ी हुई| उसकी मां तो लंड चूसने में खोई हुई थी, उसको पता भी न चला कब उसकी पुत्री रीना उसके पास आ गई|

सुलेखा के पीछे खड़ी होकर रीना बोली- ये क्या हो रहा है मम्मी… क्या कर रही हो तुम?
सुलेखा को काटो तो खून नहीं| सकते में आ गई, मुंह खुल गया और आंखें फट गईं| लंड भी फिसल के बाहर आ गया|
कुछ क्षण तो उसको कुछ समझ ही न आया कि क्या करे!?!

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